कल्पनाओ की लेहरो में बहे जा रहा था
खुद से ही कुछ मै कहे जा रहा था
कभी पहाड़ो की चोटी चढ़े जा रहा था
कभी समंदर में फिर मै बहे जा रहा था
कभी इस पग पे मुड़ता फिर उसी मोड़ पे खोता
ना जाने ये मै किधर जा रहा था
कभी इस पल को हसता फिर उसी पल को रोता
कभी उस पर मै हसता कभी खुद पर मै रोता
मेरी आँखों से आंसू बहे जा रहा था
मेरा दिल भी मुझसे कुछ कहे जा रहा था
पर इस दिल की बात ना मै समझ पा रहा था
और कल्पनाओ की लेहरो में बहे जा रहा था